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मेरे बचपन की कहानी

मेरे बचपन के वक़्त तो मुर्गों की बांग नींद से जगाती थी, कभी बाबा के तानें , तो कभी मम्मी का प्यार , बिस्तर छुड़वाती थी।सूरज के जगने से पहले ही , दिन शुरू हो जाता था । हर कोई अपने काम को लेकर , काम में लग जाता था ।नहा धोकर स्कूल जाने को सब तैयार होते थे, जिनको …

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जमींदार और गरीब बुढ़िया की कहानी

किसी श्रीमान ज़मींदार के महल के पास एक ग़रीब अनाथ विधवा की झोंपड़ी थी। ज़मींदार साहब को अपने महल का अहाता उस झोंपड़ी तक बढ़ाने की इच्छा हुई, विधवा से बहुतेरा कहा कि अपनी झोंपड़ी हटा ले, पर वह तो कई ज़माने से वहीं बसी थी; उसका प्रिय पति और इकलौता पुत्र भी उसी झोंपड़ी में मर गया था। पतोहू …

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ज्यादा अच्छे मत बनो, नहीं तो हमेशा दुखी रहोगे

मानव स्वभाव पर बुद्ध कहानी आचार्य चाणक्य ने कहा था कि इंसान को ज्यादा सीधा भी नहीं होना चाहिए, क्योंकि अगर हम जंगल में जाकर देखे तो, जान पाएंगे की सीधे पेड काट दिए जाते हैं जबकि टेढे मेढे पेड छोड दिए जाते हैं। तो आज की हमारी ब्लॉग पोस्ट भी इसी बारे में है कि ज्यादा अच्छा बना बुरा …

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आदमी मुसाफिर है आता है जाता है

किशोर दा प्लेबैक सिंगिंग में एक दूसरे के प्रतिस्पर्धी होने के बावजूद आपस में न केवल बहुत अच्छे दोस्त थे वरन् दुख-सुख में भी हमेशा साथ होते थे।

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चिठ्ठी

बहनें परेशान हो चुकी थीं। इस बार राखी पर अपने भाई से साफ-साफ बात कर लेने की ठान कर चारों मायके आई... यही एक ऐसा त्योहार होता था जब चारों बहने मायके आती थी.

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ठंडे झोके

रसोई से भागने का मन कर रहा था सुधा का.... आधा काम भी नहीं निपटा था पसीने से लथ-पथ मारे गरमी के बेहाल हुई जा रही थी .... घर मे एकदम पीछे की तरफ बनी रसोई में तनिक भी हवा की गुंजाइश नहीं है......... उसे बेटी आराध्या की बहुत याद आ रही थी.

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नए युग की शुरुआत

।ईस्ट इंडिया नाम की ब्रिटिश कंपनी लगभग पूरे विश्व पर राज करती थी। ब्रिटेन से सबसे बुरे पर प्रभावशाली लोग इस कंपनी के मलिक हुआ करते थे। एक टाइम में ब्रिटेन की ऑफिसियल सेना से दुगुनी बड़ी सेना इनके पास हुआ करती थी।

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संस्कारी बहु

बेटा बुढ़ापे की लाठी होता है।इसलिये लोग अपने जीवन मे एक "बेटा" की कामना ज़रूर रखते हैं ताकि बुढ़ापा अच्छे से कटे। ये बात सच भी है क्योंकि बेटा ही घर में बहु लाता है।बहु के आ जाने के बाद एक बेटा अपनी लगभग सारी जिम्मेदारी अपनी पत्नी के कंधे पर डाल देता है।

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शम्मी कपूर और गीता बाली

अपने पहले बेटे के जन्म का आशीर्वाद मिला। उन्होंने उसका नाम आदित्य राज कपूर रखा। 1961 में उनकी एक बेटी कंचन कपूर हुई। यह एक आदर्श विवाह था

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लगातार दो बेटियां हो गई दो साल के अंतराल में

वारिस बनते हैं लड़कियां नहीं। जहां पर भी कृतिका और अमृता के पापा आज है वहीं से देखकर गर्व से उनका सीना चौड़ा हो रहा होगा यह सोच कर कि "मेरे बाद मेरी बेटियों ने हमारा नाम ऊंचा रखा है, जीवित रखा।"

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