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मनमोहन तुम रूठ गए तो कौन मेरा जग में

मनमोहन तुम रूठ गए तो कौन मेरा जग मेंकान्हा कौन मेरा ज आग मेंसाथ रहे हो अब ना रहा तो कौन मेरा जग मेंकान्हा कौन मेरा ज आग में…… ज़िंदगीका कारवाँ रुकता नहीं हैदिल है श्याम तुम बिन धड़कता नहीं हैचलने से पहले मैं गिर गया तो कौन मेरा जग मेंकान्हा कौन मेरा ज आग में….. तुम्हे क्या नहीं खबर …

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जब याद कान्हा तेरी आई

aao kanhaiya aao muraaree- krishn bhajan

जब याद कान्हा तेरी आईमोरे नैन नीर भर आयेमैं रोया तुझे याद करके कान्हामैं रोया तुझे याद करके……….. याद आता है तेरा माखन चुरानावो गोपियों को पनघट बुलानाकैसे सही कान्हा तेरी जुदाईमोरे नैन नीर भर आयेमैं रोया तुझे याद करके कान्हामैं रोया तुझे याद करके……….. मेरे साजन मेरे माहीकाहे सताए आजा कन्हाईकाहे जग में है मुझे बिसराईमोरे नैन नीर भर …

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हर समय अरदास करूँ मैं

हर समय अरदास करूँ मैंचरणों में श्याम तेरेतूने दिया है नया सवेराकर दिए दूर अँधेरेतेरी दया से ओ श्याम बाबामैं हूँ बड़ा खुशहालमेरे सांवरियारखना मेरा ख़यालमेरे सांवरियारखना यूँ ही ख़याल| तूने ही मुझको बाबाहिम्मत सदा बंधाईजब जब डूबी नैया मेरीतुमने पार लगाईंबदल ना पाया जो कोई बाबातुमने बदले हालमेरे सांवरियारखना मेरा ख़यालमेरे सांवरियारखना यूँ ही ख़याल। सोचा ना था ऐसा …

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क्रोध अकेला नहीं आता

सभी धर्मों में क्रोध को सर्वनाश का प्रमुख कारण बताया गया है। महाभारत में कहा गया है कि निद्रां तंद्रा भयं क्रोधः आलस्यं दीर्घसूत्रिता। इसलिए आलस्य एवं क्रोध आदि दुर्गुणों को छोड़ने में ही कल्याण है। क्रोध के कारण मानव आवेश में आकर विवेक खो बैठता है तथा उसका दुष्परिणाम कई बार अत्यंत घातक होता है। आचार्य महाप्रज्ञ ने लिखा …

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सत्कर्म करते रहो

सत्कर्म करते रहो

विधि का नियम है कि मानव को जन्म से लेकर मृत्युपर्यंत कुछ-न- कुछ कर्म करते रहना पड़ता है। इसलिए धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि मनुष्य को हर क्षण सत्कर्म में ही व्यतीत करना चाहिए। सत्कर्म करते रहने में ही जीवन की सार्थकता है। आदि शंकराचार्य कहते हैं, जो पुरुषार्थहीन है, वह वास्तव में जीते-जी मरा हुआ है। गीता में …

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दीप जलाकर देखो

तीर्थंकर महावीर से एक दिन एक श्रद्धालु ने पूछा, ‘भगवन्, मैं सभी व्रतों का यथासंभव पालन करता हूँ। अर्जित धन का एक अंश दान करता हूँ, उपवास भी करता हूँ, किंतु कभी-कभी ऐसा लगता है कि जीवन व्यर्थ जा रहा है। मन की शांति के लिए क्या करना चाहिए?’ यह सुनकर महावीर ने उसी से प्रश्न किया, ‘क्या केवल धन …

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मानवता का गुण

ऋग्वेद का एक मंत्र है- मनुर्भव अर्थात् मनुष्य बनो। वैदिक विद्वान् वेदमूर्ति पं. सातवलेकर ने एक सभा में जब मंत्र दोहराया-मनुर्भव, तो एक सज्जन ने पूछा, ‘क्या सभा में उपस्थित लोग मनुष्य नहीं हैं?’ पंडित सातवलेकरजी ने कहा, ‘भाई! हर जीव के कुछ लक्षण होते हैं। यदि मानवता नहीं है, तो कोई मानव कैसे कहला सकता है? लक्षणों से ही …

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आचरण के बिना व्यर्थ

दार्शनिक राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन स्वयं शिक्षक रहे थे। वह कहा करते थे, वही शिक्षा सार्थक कही जाएगी, जो सदाचारी व संस्कारी बनने की प्रेरणा देती है। संस्कारहीन शिक्षा प्राप्त व्यक्ति को यह विवेक नहीं रहता कि क्या करने में कल्याण है। इसलिए शिक्षा के साथ-साथ आचरण की शुचिता पर आवश्य ध्यान देना चाहिए। रावण ने सोने की लंका बनाई। …

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ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति

धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि प्रत्येक प्राणी में परमात्मा के दर्शन करनेवाला और प्रत्येक जीव से प्रेम करनेवाला सच्चा ब्रह्मज्ञानी होता है। एक दिन ब्रह्मनिष्ठ संत उड़िया बाबा गंगा तट पर श्रद्धालुओं को उपदेश दे रहे थे। उन्होंने अचानक दोनों हाथों से गंगाजी की बालुका (रेती) उठाई और पास बैठे भक्त को संबोधित करते हुए कहा, ‘शांतनु, जब तक …

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सच्चे सुख की तलाश

अधिकांश लोग भौतिक सुविधाओं को सुख का साधन मानते हैं, इसलिए ‘सुख-सुविधा’ शब्द का प्रायः एक साथ उपयोग किया जाता है। सुख पाने के लिए मानव अत्याधुनिक भौतिक साधनों की खोज में लगा रहता है। किंतु देखने में आता है कि असीमित सुविधाओं से संपन्न व्यक्ति भी कहता है, ‘मुझे आत्मिक सुख-शांति नहीं मिल पा रही है।’ सुख-शांति की खोज …

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