एक बार चित्र को गौर से देखिए फिर पोस्ट पढ़े। भारतीय महिलाएं दंडवत प्रणाम क्यों नहीं करती हैं ? ये है भगवान को प्रणाम करने का सही तरीका। आपने कभी ये देखा है कि कई लोग मूर्ति के सामने लेट कर माथा टेकते है। जी हां इसी को साष्टांग दंडवत प्रणाम कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार माना जाता है …
Read More »Guru Parvachan
वो बंद दरवाजे बुलाते हैं पर कोई नहीं आता
किसी दिन सुबह उठकर एक बार इसका जायज़ा लीजियेगा कि कितने घरों में अगली पीढ़ी के बच्चे रह रहे हैं? कितने बाहर निकलकर नोएडा, गुड़गांव, पूना, बेंगलुरु, चंडीगढ़,बॉम्बे, कलकत्ता, मद्रास, हैदराबाद, बड़ौदा जैसे बड़े शहरों में जाकर बस गये हैं? कल आप एक बार उन गली मोहल्लों से पैदल निकलिएगा जहां से आप बचपन में स्कूल जाते समय या दोस्तों …
Read More »बुज़ुर्ग बोझ नहीं, अनमोल धरोहर: जापानी लोक-कथा!!
जापान के एक राज्य में किसी वक्त क़ानून था कि बुजुर्गों को एक निश्चित उम्र में पहुंचने के बाद जंगल में छोड़ आया जाए…जो इसका पालन नहीं करता था, उसे संतान समेत फांसी की सज़ा दी जाती थी…उसी राज्य में पिता-पुत्र की एक जोड़ी रहती थी…दोनों में आपस मे बहुत प्यार था…उस पिता को भी एक दिन जंगल में छोड़ने …
Read More »काला काला काला नी सहेलियो
काला काला काला नी सहेलियोकाले ने बहुत सताया नी सहेलियो जद काले ने जन्म लैया सीजैला चे हो गया उजाला नी सहेलियो जद काले नू टोकरी चे पा लैयाजैला दा खुल गया ताला नी सहेलियो जद काले नू यमुना चे लै गयेयमुना ने मारया उछाला नी सहेलियो जद काले नू यशोदा कौल लै गयेयशोदा ने पा लैया काला नी सहेलियो …
Read More »तृष्णा के दुष्परिणाम
तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ काशी नरेश राजा विश्वसेन के पुत्र थे। पिता ने सोलह वर्ष की आयु में ही उन्हें सत्ता सौंप दी थी, लेकिन कुछ ही वर्षों में सांसारिक सुखों से उन्हें विरक्ति होने लगी। एक दिन उन्होंने अपने पिताश्री से कहा, ‘मैंने काफी समय तक राजा के रूप में सांसारिक सुख-सुविधाओं का उपभोग किया है, फिर भी सुख के …
Read More »ब्रह्मविद्या का ज्ञान
सतयुग में महर्षि दध्यंग आथर्वण अग्रणी ब्रह्मवेत्ता के रूप में विख्यात थे। देव शिरोमणि इंद्र उनकी ख्याति सुनकर एक दिन उनके आश्रम में पहुँचे। इंद्र ने कहा, ‘महर्षि, मेरी मनोकामना पूर्ण करने के लिए मुझे वरदान देने का वचन दें। महर्षि आतिथ्य स्वीकार को बहुत महत्त्व देते थे, अतः उन्होंने वचन देकर उनसे बैठने को कहा। महर्षि ने पूछा, ‘अतिथिवर, …
Read More »आसक्ति से पतन
जैन संत आचार्य तुलसी कहते थे कि किसी भी तरह की आसक्ति या महत्त्वाकांक्षा से सर्वथा मुक्त रहने में ही कल्याण है। वे भरत की कथा सुनाते हुए चेतावनी दिया करते थे कि हिरण की आसक्ति के कारण ही उन्हें हिरण बनना पड़ा था। एक दिन उन्होंने एक कथा सुनाई एक महात्मा की घोर तपस्या से उनके आश्रम में सिंह …
Read More »मन पवित्र करो
छत्रपति शिवाजी के गुरु समर्थ रामदास मन की शुद्धि पर बहुत जोर दिया करते थे। वे कहा करते थे, जिसका मन कलुषित होता है, वह अपने परिवारजनों के साथ भी आनंदपूर्वक नहीं रह सकता। दूसरी ओर जिसका मन निश्छल होता है, वह सहज ही सभी का विश्वास प्राप्त कर लेता है। समर्थ रामदास ने मन की पवित्रता और निश्छलता की …
Read More »सत्कर्म की प्रेरणा
महामना पंडित मदनमोहन मालवीयजी श्रीमद्भागवत के गहन अध्येता थे। एक बार संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी मालवीयजी के दर्शन करने काशी गए। उन्होंने उनसे प्रश्न किया, ‘आपको श्रीमद्भागवत के किस श्लोक ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया?’ महामना ने कहा 'मनसैतानि भूतानि प्रणमेद्रहु मानयन। ईयवरो जीवकलया प्रविष्टो भगवानिति॥ अर्थात् सभी प्राणियों में भगवान् ने ही अंशभूत जीव के रूप में प्रवेश किया है, …
Read More »चिरंजीवी हैं परशुराम
परशुरामजी के भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता है। .सतयुग और त्रेतायुग के संधिकाल में राजाओं की निरंकुशता से जनजीवन त्रस्त और छिन्न-भिन्न हो गया था। दीन और आर्तजनों की पुकार को कोई सुनने वाला नहीं था।ऐसी परिस्थिति में महर्षि ऋचिक के पुत्र जमदग्नि अपनी सहधर्मिणी रेणुका के साथ नर्मदा के निकट पर्वत शिखर पर जमदग्नेय आश्रम (अब जानापाव) …
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