Breaking News

Guru_Profile

व्रज जीवन का संगठन और तैयारी

Aisi Lagi Lagan , Merya Ho Gayi Magan

शैशव काल से ही भगवान ने अपने प्रेम के प्रभाव से सारे वज्र को एकता के सांचे में ढाल दिया था । पहले तो जैसा हम ऊपर कह आये हैं, उन्होंने सब लोगों के हित की दृष्टि से सारे वज्र की संपत्ति को बराबर बांट दिया और मनुष्यों, पशुओं तथा प्रकृति को एकता के सूत्र में बांध दिया । साथ …

Read More »

गंगावतार – भगवान शिव के अवतार

krshnadarshan - bhagavaan shiv ke avataar

पूर्वकाल में अयोध्या में सगर नामक एक परम प्रतापी राजा राज्य करते थे । उनके एक रानी से एक तथा दूसरी से साठ हजार पुत्र उत्पन्न हुए । कुछ काल के बाद महाराज सगर के मन में अश्वमेध – यज्ञ करने की इच्छा हुई । राजा सगरने यज्ञीय अश्व की रक्षा का बार अपने पौत्र अंशुमान को सौंपकर यज्ञ प्रारंभ …

Read More »

गुणनिधि पर भगवान शिव की कृपा

shankar

पूर्वकाल में यज्ञदत्त नामक एक ब्राह्मण थे । समस्त वेद शास्त्रादि का ज्ञाता होने से उन्होंने अतुल धन एवं कीर्ति अर्जित की थी । उनकी पत्नी सर्वगुणसंपन्न थी । कुछ दिनों के बाद उन्हें एक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसका नाम गुणनिधि रखा गया । बाल्यावस्था में इस बालक के कुछ दिन तो धर्मशास्त्रादि समस्त विद्याओं का अध्ययन किया, परंतु बाद …

Read More »

भक्तवत्सलता

Nahaye Dhoye ke jo mn ka mael na jaye bhajan

जिस भक्त पर भगवान श्रीराम की ममता (अपनापन) और प्यार हो गया, फिर उस पर करुणा के सिवा उन्हें कभी क्रोध आता ही नहीं । वे अपने भक्त के दोष को आंखों से देखकर भी ध्यान में नहीं लाते और यदि कहीं उसका गुण सुनने में भी आ गया तो संत – समाज में उसकी प्रशंसा करते हैं । भला, …

Read More »

मन ही बंधन और मुक्ति का कारण

khud to baahar hee khade rahe

सुशील नाम के एक ब्राह्मण थे । उनके दो पुत्र थे । बड़े का नाम था सुवृत्त और छोटे का वृत्त । दोनों युवा थे । दोनों गुणसंपन्न तथा कई विद्याओं में विशारद थे । घूमते – घामते दोनों एक दिन प्रयाग पहुंचे । उस दिन श्रीकृष्णजन्माष्टमी थी । इसलिए श्रीबेणीमाधव जी के मंदिर में महान उत्सव था । महोत्सव …

Read More »

श्रीलक्ष्मण जी के विशेष धर्म से शिक्षा

shree lakshman jee ke vishesh dharm se shiksha

हे नाथ ! यह दास स्वभाव से ही सत्य कह रहा है कि गुरु, माता, पिता तथा संसार में किसी को भी यह नहीं जानता । जहां तक प्रीति का, विश्वास का अथवा सांसारिक स्नेह के संबंध (नाते) का कोई आश्रय है, मेरे वह सब कुछ आप ही हैं । हे दीनबंधु ! हे उर – अंतर्यामी – साक्षात् परब्रह्म …

Read More »

वेदांतमत और वैष्णवमत

Suni Kanha Teri Bansuri

सगुण ब्रह्म ईश्वर हैं, वे सर्वशक्तिमान हैं, आत्मा में जो एक अप्रतिहत शक्ति सहज ही रहती है, वह ईश्वर की कला है । वहीं अप्रतिहत शक्ति जब एक से अधिक होती है तब उसे अंश कहते हैं । जिनमें संपूर्ण अप्रतिहत शक्ति होती हैं, उन्हें पूर्ण कहते हैं । जीव में साधारणत: कोई भी शक्ति अप्रतिहत नहीं है । योगबल …

Read More »

औढरदानी भगवान शिव

krshnadarshan - bhagavaan shiv ke avataar

भगवान शिव और उनका नाम समस्त मंगलों का मूल है । वे कल्याण की जन्मभूमि, परम कल्याणमय तथा शांति के आगार हैं । वेद तथा आगमों में भगवान शिव को विशुद्ध ज्ञानस्वरूप बताया गया है । समस्त विद्याओं के मूल स्थान भी भगवान शिव ही हैं । उनका यह दिव्यज्ञान स्वत:संभूत है । ज्ञान, बल, इच्छा और क्रिया – शक्ति …

Read More »

श्रीकृष्ण और द्रौपदी

shree krshn aur draupadee

पांडव महिषी सती द्रौपदी भगवान श्रीकृष्ण को परम बंधु भाव से पूजती थी । भगवान भी द्रौपदी के साथ असाधारण स्नेह रखते और उसकी प्रत्येक पुकार का तुरंत उत्तर देते थे । भगवान के अंत:पुर में द्रौपदी का और द्रौपदी के महलों में भगवान का जाना – आना अबाध था । जिस प्रकार भगवान का दिव्य प्रेम भी अलौकिक था …

Read More »

श्रीकृष्ण और भावी जगत

vyarth hai moh ka bandhan

  मनुष्य को आदि से सुख और शांति की खोज रही है और अंत तक रहेगी । मानव सभ्यता का इतिहास इसी खोज की कथा है । किस जाति ने इस रहस्य को जितना अधिक समझा वह उतनी ही सभ्य, जितना ही कम समझा उतनी ही असभ्य समझी जाती है । लोग भिन्न – भिन्न मार्गों से चले । किसी …

Read More »