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Gyan Ki Baat

जो गरजते हैं, वो बरसते नहीं !!

कुंभज नामक एक कुम्हार बहुत सुंदर घड़ेसुराही, गमले आदि बनाता था। उसके बनाए सामान की मांग दूरदूर तक थी। वह अपना काम पूरी ईमानदारी और निष्ठा से करता था। उसके पास एक छोटा-सा कमरा था । और बाहर बहुत बड़ा चौक। वह अपने सभी मिट्टी के बर्तनों को बनाकर उन्हें चौक में सुखाता था। उसके चौक में बहुत अच्छी और …

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दिन में तारे !!

स्कूल से घर पहुंचते ही गोलू ने बस्ता सोफे पर पटका और हाथमुंह धोने चला गया, मां ने पुकारा..गोलू । जल्दी से मेज पर आओ, खाना लगा दिया है आओ। साथसाथ खाएंगे। ठीक है..गोलू ने कहा पर देर तक मेज पर नहीं आयामां का मन खटका, कहां है गोलू । वह स्नानघर की तरफ लपकी, पर गोलू वहां नहीं था, …

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नाच न जान आंगन टेढ़ा !!

प्रांजलि की आदत थी कि वह छोटी से छोटी बात को बहुत बढ़ाचढ़ाकर बोलती थी। क्लास में कोई भी ऐसा बच्चा नहीं था, जिसका वह मजाक नहीं उड़ाती थी। कई बार तो उसके दोस्त नाराज हो जाते थे और कई बार हंसकर टाल देते थे। पर ज्यादा समय तक कोई भी उससे गुस्सा रह भी नहीं पाता था क्योंकि प्रांजलि …

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सेर को सवा सेर !!

शहर गंगापुर में सबसे बड़ी दुकान दमड़ी साह की थी। उनकी दुकान पर जरूरत का हर सामान मिल जाता था। लेकिन दमड़ी साह थे बड़े नफाखोर। से सस्ती और बेकार चीजें उठा लाते और यहां मनमाने दामों में बेचते।चावल- मिलावट भी खूब करते। पिसी धनिया में लकड़ी का बुरादा, दालों में छोटे पत्थरपिसी मिर्च में ईटों का बुरादा, काली मिर्च …

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साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप !!

साँच बराबरि तप नहीं, झूठ बराबर पाप। जाके हिरदै साँच है ताकै हृदय आप॥ सच्चाई के बराबर कोई तपस्या नहीं है, झूठ (मिथ्या आचरण) के बराबर कोई पाप कर्म नहीं है। जिसके हृदय में सच्चाई है उसी के हृदय में भगवान निवास करते हैं। साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप ‘सत्येन धारयते जगत् ।’ अर्थात् सत्य ही जगत को धारण …

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मिट्टी का खिलौना !!

 एक गांव में एक कुम्हार रहता था, वो मिट्टी के बर्तन व खिलौने बनाया करता था, और उसे शहर जाकर बेचा करता था। जैसे तैसे उसका गुजारा चल रहा था, एक दिन उसकी बीवी बोली कि अब यह मिट्टी के खिलोने और बर्तन बनाना बंद करो और शहर जाकर कोई नौकरी ही कर लो, क्यूँकी इसे बनाने से हमारा गुजारा …

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बुद्धिहीन सेवक !!

किसी शहर में एक सेठ रहता था । किसी कारणवश उस बेचारे को अपने कारोबार में घाटा पड़ गया और वह गरीब हो गया । गरीब होने का उसे बहुत दुख हुआ था । इस दुख से तंग जाकर उसने सोचा कि इस जीवन से क्या लाभ? इससे तो मर जाना अच्छा है । यह सोचकर एक रात को वह …

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राजाज्ञा और नैतिकता !!

औषधियों की खोजबीन में राजवैद्य चरक मुनि जंगलों में घूम रहे थे। उन्हें जिस औषधि की तलाश थी, वह जंगल में कहीं भी नजर नहीं आ रही थी। तभी उनकी दृष्टि एक खेत में उगे सुन्दर पुष्प पर पड़ी। उन्होंने सहस्रों पुष्पों के गुण-दोषों की जांच की थी, परन्तु यह तो कोई नए प्रकार का ही पुष्प था। उनका मन …

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अनूठे पंडित !!

चंद्रनगर में एक विद्वान् रहा करते थे। वे कहते थे, ‘विद्या से बड़ा धन दूसरा नहीं। विद्यावान की सर्वत्र पूजा होती है।’ पंडितजी के तीन पुत्र थे। तीनों ने कड़ी मेहनत से शास्त्रों का अध्ययन किया बड़ा पुत्र आयुर्वेद का प्रकांड विद्वान् बन गया, जबकि दूसरा धर्मशास्त्रों का और तीसरा नीतिशास्त्र का विद्वान् बना। तीनों ने एक-एक ग्रंथ की रचना …

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राजा और फकीर !!

विरक्त संत एकांत में भगवान् की भक्ति-साधना में मस्त रहते हैं। एक बार संत कवि कुंभनदास को एक बादशाह ने अपने महल में आने के लिए बुलावा भेजा। संत ने कागज पर लिखकर दिया, ‘संतन कहा सीकरी सो काम, आवत जात पन्हैया टूटे-बिसर जाए हरिनाम।’ यानी मुझे राजा व उसके महल से क्या लेना-देना है। वन का एकांत छोड़कर वहाँ …

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