वर्षों पहले एक समुद्र में एक नर और एक मादा कौवा मदमस्त हो कर जल-क्रीड़ा कर रहे थे। तभी समुद्र की एक लौटती लहर में कौवी बह गयी, जिसे समुद्र की किसी मछली ने निगल लिया। नर कौवे को इससे बहुत दु:ख हुआ। वह चिल्ला-चिल्ला कर विलाप करने लगा। पल भर में सैकड़ों कौवे भी वहाँ आ पहुँचे। जब अन्य कौवों …
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कौवों और उल्लुओं की शत्रुता की कथा – जातक कथाएँ !!
कौवों और उल्लुओं की शत्रुता बड़ी पुरानी है। मगर कितनी पुरानी और क्यों है इसका विचार कम ही लोगों ने किया अथवा करना चाहा। बौद्ध परम्परा में उपर्युक्त दो शत्रुओं के वैमनस्य की एक कथा प्रचलित है। यहाँ वही कथा एक बार फिर सुनाई जा रही है। सम्बोधि प्राप्त करने के बाद बुद्ध जब श्रावस्ती स्थित जेतवन में विहार कर …
Read More »खुदा के गुलाम !!
इब्राहिम बल्ख के बादशाह थे। सांसारिक विषय- भोगों से ऊबकर वे फकीरों का सत्संग करने लगे। बियाबान जंगल में बैठकर उन्होंने साधना की । एक दिन उन्हें किसी फरिश्ते की आवाज सुनाई दी, ‘मौत आकर तुझे झकझोरे, इससे पहले ही जाग जा । अपने को जान ले कि तू कौन है और इस संसार में क्यों आया है। ‘ यह …
Read More »शहीद की कामना !!
मदनलाल ढींगरा लंदन के इंडिया हाउस से जुड़े रहकर भारत की स्वाधीनता के लिए प्रयासरत थे। विनायक दामोदर सावरकर से प्रेरणा लेकर उन्होंने 1 जुलाई, 1909 को इंपीरियल इंस्टीट्यूट में आयोजित समारोह में सर कर्जन वायली पर सरेआम गोलियाँ बरसाकर उसकी हत्या कर दी। उन्हें फाँसी की सजा सुनाई गई । मदनलाल ढींगरा ने जेल से एक वक्तव्य जारी कर …
Read More »कुत्ता मेरा ही स्वरूप था !!
साईं बाबा शिरडी की मसजिद में रहा करते थे। वे उसे ‘द्वारका माई’ कहा करते थे । बाबा सत्संग के लिए आने वालों से अकसर कहा करते कि प्रत्येक प्राणी भगवान् का स्वरूप है। जीव मात्र से प्रेम और दुखियों की सेवा करके ही भगवान् की कृपा प्राप्त की जा सकती है । एक बार साईं बाबा के प्रति अटूट …
Read More »गुरु का लाहौर !!
गुरु तेगबहादुरजी ने अपने पुत्र गोविंदरायजी (गुरु गोविंदसिंहजी ) को लखनऊ से आनंदपुर साहिब बुला लिया था। उन्होंने उन्हें घुड़सवारी तथा अस्त्र-शस्त्र चलाने का प्रशिक्षण दिलाया। उन्हें समय-समय पर वे धर्म व भगवद्-भक्ति के महत्त्व से भी अवगत कराते रहे। लाहौर के खत्रीवंश के प्रतिष्ठित व्यक्ति हरजसमल अपनी पुत्री जीतो का विवाह गोविंदरायजी के साथ तय कर चुके थे। वे …
Read More »भजन से पहले भोजन !!
वृंदावन के एक आश्रम में संकीर्तन का कार्यक्रम चल रहा था । हरि बाबा घंटा बजाकर ‘हरिबोल – हरिबोल’ की ध्वनि के बीच मस्त होकर झूम रहे थे। विरक्त संत उड़िया बाबा स्वयं भगवत् नाम के संकीर्तन का आनंद ले रहे थे। अचानक चार-पाँच व्यक्ति वहाँ पहुँचे। उन्हें देखते ही उड़िया बाबा समझ गए कि ये लोग बीमार और भूखे …
Read More »नाम की अनूठी महत्ता !!
गुरु नानकदेवजी एक बार किसी तीर्थस्थल पर गए हुए थे। अनेक व्यक्ति उनके सत्संग के लिए वहाँ जुट गए । एक व्यक्ति ने हाथ जोड़कर प्रश्न किया, ‘बाबा, मुझ जैसे साधारण गृहस्थ के कल्याण का सरल उपाय बताएँ । ‘ गुरुजी ने कहा, ‘ईश्वर को हरदम याद करनेवाला और सादा व सात्त्विक जीवन जीने वाला व्यक्ति सहज ही अपना कल्याण …
Read More »साधु के लक्षण !!
एक दिन कोलकाता के दक्षिणेश्वर मंदिर में कुछ साधु संन्यासी स्वामी रामकृष्ण परमहंस के पास सत्संग के लिए पहुँचे। एक सद्गृहस्थ स्वामीजी के सान्निध्य में रहकर पिछले काफी समय से साधना कर रहा था । स्वामीजी उसकी सादगी, निश्छलता और भक्ति भावना से बेहद प्रभावित थे | किसी साधु ने अचानक स्वामीजी से प्रश्न किया, ‘महाराज, सच्चा साधु कौन है? …
Read More »संन्यासी की क्षमा याचना !!
स्वामी विवेकानंद नए-नए संन्यासी बने थे। उस समय तक उन्होंने प्राणिमात्र में समान भाव से ईश्वर के दर्शन के संदेश का गंभीरता से अध्ययन नहीं किया था। स्वामीजी युवावस्था में काफी समय तक ग्रामीण अंचलों का भ्रमण करने में लगे रहे। वे गाँवों की स्थिति का अध्ययन करने तथा लोगों को सदाचारी बनने और दुर्व्यसनों से दूर रहने का उपदेश …
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