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अनूठी सेवा भावना !!
गीता मर्मज्ञ सद्गृहस्थ संत जयदयाल गोयंदका ने आजीवन गीता का प्रचार करने का संकल्प लिया था। इसी उद्देश्य से गीता प्रेस गोरखपुर ) की स्थापना की गई थी। उन्होंने स्वयं भी अनेक धार्मिक ग्रंथों की रचना की । वे प्रायः कहा करते थे, ‘पीड़ितों की सेवा सबसे बड़ा धर्म है। जिसका हृदय दूसरे के दुःख को देखकर द्रवित नहीं होता, …
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