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ईश्वर के बंदों से प्रेम

एक बार भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा, “मैं उससे प्रेम करता हूँ, जो हर प्राणी के प्रति, दुःखियों के प्रति करुणा की भावना रखकर उनसे प्रेम करता है और उनकी सेवा करता है। ईसा ने भी कहा है, ‘जो पड़ोसी से, अभावग्रस्त से प्रेम करता है, उसकी सहायता करता है, मैं उससे प्रेम करता हूँ। अरब की एक प्राचीन …

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काला काला काला नी सहेलियो

gopal sawariya

काला काला काला नी सहेलियोकाले ने बहुत सताया नी सहेलियो जद काले ने जन्म लैया सीजैला चे हो गया उजाला नी सहेलियो जद काले नू टोकरी चे पा लैयाजैला दा खुल गया ताला नी सहेलियो जद काले नू यमुना चे लै गयेयमुना ने मारया उछाला नी सहेलियो जद काले नू यशोदा कौल लै गयेयशोदा ने पा लैया काला नी सहेलियो …

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बांके बिहारी मेरा काम कर दे

Banke bihari teri aarti gau bhajan

बांके बिहारी मेरा काम कर देसारी दुनिया में मेरा नाम कर दे…. कोठी आगे हौंडा सिटी कार खड़ी होजेब मेरी नोटों से खचाखच भरी होनौकरों की जय हो जय होनौकरों की लंबी कतार कर दोसारी दुनिया में मेरा नाम कर दो….. हीरो की अंगूठी पहने दोनों हाथ मेंअरे बॉडीगार्ड चले मेरे साथ साथ मेंहीरे और मोतियों से झोली भर दोसारी …

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जहाँ धर्म, वहीं विजय

महानारायणोपनिषद् में कहा गया है, धर्मों विश्वस्य जगतः प्रतिष्ठा अर्थात् धर्म ही समस्त संसार की प्रतिष्ठा का मूल है। भगवान् श्रीकृष्ण भी कहते हैं कि प्राणों पर संकट भले ही आ जाए, फिर भी धर्म पालन से डिगना नहीं चाहिए। महाभारत युद्ध के दौरान दुर्योधन प्रतिदिन माता गांधारी के पास पहुँचकर विजय की कामना के लिए आशीर्वाद की याचना किया …

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मानव में भगवान्

रामचंद्र डोंगरेजी महाराज परम विरक्त व ब्रह्मनिष्ठ संत थे। उन्होंने अपने जीवन में सौ से अधिक कथाएँ सुनाई, पर दक्षिणा में एक पैसा भी स्वीकार नहीं किया। कथा के चढ़ावे के लिए आने वाला तमाम धन वे असहाय व अभावग्रस्तों के लिए भोजन की व्यवस्था और गरीब कन्याओं के विवाह के लिए भेंट कर देते थे। अन्नदान को वे सर्वोपरि …

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दान का मूल्यांकन

प्रत्येक धर्मशास्त्र में सत्य, अहिंसा, दया, दान, उपवास आदि की महत्ता बताई गई है। इन्हें धर्म का अंग बताया गया है। साथ ही इनका पालन करते समय विवेक-बुद्धि से आकलन की भी प्रेरणा दी गई है। सत्य पर अटल रहना चाहिए, झूठ कदापि नहीं बोलना चाहिए, किंतु यदि सत्य बोलने के संकल्प के कारण किसी निर्दोष के प्राणों पर संकट …

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तृष्णा के दुष्परिणाम

तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ काशी नरेश राजा विश्वसेन के पुत्र थे। पिता ने सोलह वर्ष की आयु में ही उन्हें सत्ता सौंप दी थी, लेकिन कुछ ही वर्षों में सांसारिक सुखों से उन्हें विरक्ति होने लगी। एक दिन उन्होंने अपने पिताश्री से कहा, ‘मैंने काफी समय तक राजा के रूप में सांसारिक सुख-सुविधाओं का उपभोग किया है, फिर भी सुख के …

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लालच में भक्ति नहीं

महिला संत राबिया अरब में बसरा शहर की एक झोंपड़ी में रहकर हर क्षण भगवान् की याद में खोई रहती थीं। वे कहा करती थीं कि प्रत्येक मनुष्य का जीवन क्षणभंगुर है तथा ईश्वर शाश्वत है । बसरा के लोगों ने एक दिन देखा कि राबिया एक हाथ में आग और दूसरे हाथ में पानी से भरी बाल्टी लिए दौड़ …

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Kanha murli se mithi mithi taan sunave

यमुना किनारे पे नंद का लाला गईयां चरावे,कान्हा मुरली से मीठी मीठी तान सुनावे…… मुरली को सुन कर के सखिया हो गई रे दीवानीसुध बुध बोली वो ऐसी होगी रे मस्तानीराधे ने मुरली से कान्हा कैसा जादू पावेकान्हा मुरली से मीठी मीठी तान सुनावे…… कान्हा की मुरली की जब से तान पड़ी काननं मेंदिल मुरली ले गई रे नींद ना …

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ब्रह्मविद्या का ज्ञान

सतयुग में महर्षि दध्यंग आथर्वण अग्रणी ब्रह्मवेत्ता के रूप में विख्यात थे। देव शिरोमणि इंद्र उनकी ख्याति सुनकर एक दिन उनके आश्रम में पहुँचे। इंद्र ने कहा, ‘महर्षि, मेरी मनोकामना पूर्ण करने के लिए मुझे वरदान देने का वचन दें। महर्षि आतिथ्य स्वीकार को बहुत महत्त्व देते थे, अतः उन्होंने वचन देकर उनसे बैठने को कहा। महर्षि ने पूछा, ‘अतिथिवर, …

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