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Gyan Ki Baat

राहचबेनी: एक अनूठी क़हानी

यह कहानी दिखाती है कि जीवन के अंत में भी कैसे एक इंसान दूसरों के लाभ के लिए कुछ कर सकता है। सावित्रीदेवी की इच्छा और मदन का समर्पण इस कहानी को अद्वितीय बनाता है।

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स्मोक्ड कॉर्न (भुट्टा)बरसात भुट्टे व माइक्रोसॉफ्ट

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भुट्टे में दाने अपनी जड़ों से जुड़े हुए होते हैं, शायद इसीलिए धरती मां का प्राकृतिक स्वाद अलग किए गए मक्के के दानों से दोबारा नहीं मिलता

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तीर्थ का अर्थ

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मां बाहर दरवाजे पर खड़ी हुई उसकी राह देख रही थी अंदर आकर हाथ मुंह धोकर दोनों ने भोजन किया तो मां ने उसे प्रसाद देते हुए कहा आज गली के मोड़ वाली सुमन भी वैष्णो देवी मंदिर दर्शन कर आई बस एक में ही हूं जो कोई तीर्थ .....

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एम॰ एस॰ सुब्बुलक्ष्मी की जीवन कहानी

श्रीमती सुब्बुलक्ष्मी इनका बचपन का नाम मदुरै शनमुखावदिवु सुब्बुलक्ष्मी का जन्म 16 सितंबर 1916 को तमिलनाडु के मदुरै शहर, मद्रास प्रेसीडेंसी , ब्रिटिश भारत में हुआ। आप ने छोटी आयु से संगीत का शिक्षण आरंभ किया और दस साल की उम्र में ही अपना पहला डिस्क रिकॉर्ड किया

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लंदन तक तखत हिला

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मैंने ब्रिटिश राज में अपने लोगों को मरते-कटते देखा है। मुझे इस मृत्यु से डर नहीं लग रहा। मैं अपनी जन्मभूमि के स्वाभिमान की रक्षा के लिए मर रहा हूँ, इससे बड़ा सम्मान मेरे लिए क्या हो सकता है"

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मीनाकुमारी भूत-प्रेतों पर भी विश्वास

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अकेली थी। पूरी तरह से असहाय महसूस करते हुए, मैं भविष्य के बारे में सोच भी नहीं सकती थी जब मैंने एक सरसराहट की आवाज़ सुनी और अपने माथे पर एक हाथ महसूस किया। तभी एक धीमी आवाज़ ने मुझसे कहा: " हिम्मत रखो, डरो मत.'' मैं उठकर पापा के पास भागी

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सुकून मिलता है

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सितम्बर 1988 की बात है । पानागढ स्कूल में क्लास 3A की मैं क्लास टीचर थी । नयी - नयी नौकरी लगी थी , मैं दुनिया बदल दूँगी वाली उत्साह से भरी थी ।

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समझदार बहु

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रानी ने शिकायती लहजे में अपने भाई मोहन से कहा.... फैक्ट्री से घर लंच करने आएं मोहन ने भी जैसे ही पहला कौर सब्जी के साथ लगाकर खाया तो वह भी गुस्से से बोला.... सुधा ये क्या हैं ध्यान कहां रहता है तुम्हारा सब्जी में इतना ज्यादा नमक

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अधिकार सबका है बराबर

फूल पर हँसकर अटक तो, शूल को रोकर झटक मत, ओ पथिक ! तुझ पर यहाँ अधिकार सबका है बराबर ! बाग़ है ये, हर तरह की वायु का इसमें गमन है, एक मलयज की वधू तो एक आँधी की बहन है, यह नहीं मुमकिन कि मधुऋतु देख तू पतझर न देखे, कीमती कितनी कि चादर हो पड़ी सब पर …

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कलम का सिपाही

एक ग़रीब नौजवान को हीले से लगाना उनके लिए मुशकिल बात न थी। नवाब के बारे मे उनका ख़्याल भी अच्छा था। सीधा, सच्चा, जहीन, मेहनती लड़का है। मगर बहुत ग़रीब है। बेकन साहब ने यहाँ-वहाँ दो-एक ख़त लिखे और मुंशीजी की नियुक्ति २ जुलाई

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