Breaking News

Tag Archives: raaja

माण्डव्य ऋषि का यमराज को श्राप

maandavy rshi ka yamaraaj ko shraap

महाभारत के अनुसार, माण्डव्य नाम के एक ऋषि थे। राजा ने भूलवश उन्हें चोरी का दोषी मानकर सूली पर चढ़ाने की सजा दी। सूली पर कुछ दिनों तक चढ़े रहने के बाद भी जब उनके प्राण नहीं निकले, तो राजा को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने ऋषि माण्डव्य से क्षमा मांगकर उन्हें छोड़ दिया। तब ऋषि यमराज के …

Read More »

जो दुनिया भर की सभी वस्तुओं को पाकर भी कभी तृप्त नही होता।

एक राजा के पास एक बकरा था । एक दिन राजा ने घोषणा की कि जो कोई भी इस बकरे को जंगल में चराकर तृप्त करेगा मैं उसको अपना आधा राज्य दे दूंगा। किंतु बकरे का पेट पूरा भरा है या नहीं इसकी परीक्षा मैं स्वयं करूँगा। घोषणा को सुनकर एक मनुष्य राजा के पास आकर बोला कि बकरा चराना …

Read More »

प्रतिशोध ठीक नहीं होता

बालक पिप्पलाद ने जब होश संभाला, तब औषधियों को अपने अभिभावक के रूप में देखा । वृक्ष फल देते थे, पक्षी दाने लाते थे और मृग हरी वस्तुएं । ओषधियां अपने राजा सोम से मांगकर अमृत की घूंटें पिप्पलाद को पिलाया करती थीं । यह दृश्य देखकर पिप्पलाद ने वृक्षों से पूछा – ‘देखा यह जाता है कि मनुष्य माता …

Read More »

सीता शुकी संवाद

Mata Sita Ke svemver Ki katha

एक दिन परम सुंदरी सीता जी सखियों के साथ उद्यान में खेल रही थीं । वहां उन्हें शुक पक्षी का एक जोड़ा दिखायी दिया जो बड़ा मनोरम था । वे दोनों पक्षी एक डाली पर बैठकर इस प्रकार बोल रहे थे – ‘पृथ्वी पर श्रीराम नाम से प्रसिद्ध एक बड़े सुंदर राजा होंगे । उनकी महारानी सीता के नाम से …

Read More »

सत्कर्म में श्रमदान का अद्भुत फल

vasishth2

बृहत् कल्प की बात है । उस समय धर्ममूर्ति नामक एक प्रभावशाली राजा थे । उनमें कुछ अलौकिक शक्तियां थीं । वे इच्छा के अनुसार रूप बदल सकते थे । उनकी देह से तेज निकलता रहता था । दिन में चलते तो सूर्य की प्रभा मलिन हो जाती थी और रात में चलते तो चांदनी फीकी पड़ जाती थी । …

Read More »

गंगावतार – भगवान शिव के अवतार

krshnadarshan - bhagavaan shiv ke avataar

पूर्वकाल में अयोध्या में सगर नामक एक परम प्रतापी राजा राज्य करते थे । उनके एक रानी से एक तथा दूसरी से साठ हजार पुत्र उत्पन्न हुए । कुछ काल के बाद महाराज सगर के मन में अश्वमेध – यज्ञ करने की इच्छा हुई । राजा सगरने यज्ञीय अश्व की रक्षा का बार अपने पौत्र अंशुमान को सौंपकर यज्ञ प्रारंभ …

Read More »

कुवलाश्व के द्वारा जगत की रक्षा

पूर्वकाल में धुंधु नाम का एक राक्षस हुआ था । वह ब्रह्मा से वरदान पाकर देवताओं, दानवों, दैत्यों, नागों, गंधर्वों और राक्षसों के द्वारा अवध्य हो गया था तथा उसने तीनों लोकों को जीतकर अपने अधीन कर लिया था । वह अहंकार का पुतला था, अत: सदा अमर्ष में भरा रहता और सदा सबको सताया करता था । अंत में …

Read More »

सुदर्शन पर जगदंबा की कृपा

ghoonghat ka pat khol re

अयोध्या में भगवान राम से कुछ पीढ़ियों बाद ध्रुवसंधि नामक राजा हुए । उनकी दो स्त्रियां थीं । पट्टमहिषी थी कलिंगराज वीरसेन की पुत्री मनोरमा और छोटी रानी थी उज्जयिनी नरेश युधाजित की पुत्री लीलावती । मनोरमा के पुत्र हुए सुदर्शन और लीलावती के शत्रुजित । महाराज की दोनों पर ही समान दृष्टि थी दोनों राजपुत्रों का समान रूप से …

Read More »

आरोग्य – सुभाषित – मुक्तावली

aarogy - subhaashit - muktaavalee

सुख – दु:ख का कर्ता व्यक्ति स्वयं ही होता है, ऐसा समझकर कल्याणकारी मार्ग का ही अवलंबन लेना चाहिए, फिर भयभीत होने की कोई बात नहीं । परीक्षक – विवेकीजन ठीक – ठाक परीक्षा करके हितकर मार्ग का सेवन करते हैं, परंतु रजोगुण और तमोगुण से आवृत बुद्धिवाले लौकिक मनुष्य (हिताहितका विचार न करके तत्काल) प्रिय (मालूम होने वाले आचार …

Read More »

कर्तव्यपरायणता का अद्भुत आदर्श

bhagavaan bhaaskar kee aaraadhana ka adbhut phal

प्राचीन काल में सर्वसमृद्धिपूर्ण वर्धमान नगर में रूपसेन नाम का एक धर्मात्मा राजा था । एक दिन उसके दरबार में वीरवर नाम का एक गुणी व्यक्ति अपनी पत्नी, कन्या एवं पुत्र के साथ वृत्ति के लिए उपस्थित हुआ । राजा ने उसकी विनयपूर्ण बातों को सुनकर प्रतिदिन एक सहस्त्र स्वर्णमुद्रा का वेतन नियत कर सिंहद्वार के रक्षक के रूप में …

Read More »