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धन की तृष्णा

सभी धर्मशास्त्रों में धन-संपत्ति तथा अन्य सांसारिक पदार्थों के प्रति तृष्णा को पतन का मूल कारण बताया गया है। महाभारत के वन पर्व में कहा गया है, तृष्णा ही सर्वपापिष्ठा अर्थात् तृष्णा सर्वाधिक पापमयी है। तृष्णा के कारण मानव घोर पाप कर्म करने में भी नहीं हिचकिचाता। विष्णु पुराण में कहा गया है, ‘जो व्यक्ति धन-संपत्ति को भगवान् की धरोहर …

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दुःख में सुमिरन

कोई भी व्यक्ति स्वेच्छा से दुःख स्वीकार करने को तत्पर नहीं हो सकता। सभी हर क्षण सुखी रहने की कामना करते हैं। महाभारत में जरूर पांडवों की माता कुंती का प्रसंग मिलता है, जो भगवान् से प्रार्थना करती हैं, ‘प्रभु, मेरे जीवन में समय-समय पर दुःख का आभास होते रहना चाहिए। मैंने अनुभव किया है कि सुख में आपकी याद …

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पत्नी स्वर्ग का साधन है

कश्यपस्मृति में कहा गया है, दाराधीना क्रियाः स्वर्गस्य साधनम्। तीर्थयात्रा, दान, श्राद्धादि जितने भी सत्कर्म हैं, वे सभी पत्नी के अधीन हैं। अतः पत्नी स्वर्ग का साधन है। यह भी कहा गया है कि नास्ति भार्यासमं तीर्थम् अर्थात् पत्नी साक्षात् तीर्थ है। स्वामी सत्यमित्रानंदगिरिजी धर्म प्रचार के लिए अमेरिका गए, तो एक अमेरिकी ने उनसे पूछा, ‘क्या भारत में पति …

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जहाँ धर्म, वहीं विजय

महानारायणोपनिषद् में कहा गया है, धर्मों विश्वस्य जगतः प्रतिष्ठा अर्थात् धर्म ही समस्त संसार की प्रतिष्ठा का मूल है। भगवान् श्रीकृष्ण भी कहते हैं कि प्राणों पर संकट भले ही आ जाए, फिर भी धर्म पालन से डिगना नहीं चाहिए। महाभारत युद्ध के दौरान दुर्योधन प्रतिदिन माता गांधारी के पास पहुँचकर विजय की कामना के लिए आशीर्वाद की याचना किया …

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मानव में भगवान्

रामचंद्र डोंगरेजी महाराज परम विरक्त व ब्रह्मनिष्ठ संत थे। उन्होंने अपने जीवन में सौ से अधिक कथाएँ सुनाई, पर दक्षिणा में एक पैसा भी स्वीकार नहीं किया। कथा के चढ़ावे के लिए आने वाला तमाम धन वे असहाय व अभावग्रस्तों के लिए भोजन की व्यवस्था और गरीब कन्याओं के विवाह के लिए भेंट कर देते थे। अन्नदान को वे सर्वोपरि …

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दान का मूल्यांकन

प्रत्येक धर्मशास्त्र में सत्य, अहिंसा, दया, दान, उपवास आदि की महत्ता बताई गई है। इन्हें धर्म का अंग बताया गया है। साथ ही इनका पालन करते समय विवेक-बुद्धि से आकलन की भी प्रेरणा दी गई है। सत्य पर अटल रहना चाहिए, झूठ कदापि नहीं बोलना चाहिए, किंतु यदि सत्य बोलने के संकल्प के कारण किसी निर्दोष के प्राणों पर संकट …

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तृष्णा के दुष्परिणाम

तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ काशी नरेश राजा विश्वसेन के पुत्र थे। पिता ने सोलह वर्ष की आयु में ही उन्हें सत्ता सौंप दी थी, लेकिन कुछ ही वर्षों में सांसारिक सुखों से उन्हें विरक्ति होने लगी। एक दिन उन्होंने अपने पिताश्री से कहा, ‘मैंने काफी समय तक राजा के रूप में सांसारिक सुख-सुविधाओं का उपभोग किया है, फिर भी सुख के …

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इनाम अकबर बीरबल कहानी

अकबर ने अपने दरबार को सभी के लिए खोल रखा था उसमें चाहे कोई व्यक्ति अपनी फ़रियाद लेकर आये या फिर अपनी प्रतिभा का प्रद्रशन करने आये। एक बार की बात है एक रामदेव नाम का गायक अपने संगीत को अकबर के दरबार में दिखाने की मंशा से राजस्थान से आया। वह अकबर के महल में प्रवेश करने लगा लेकिन …

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लालच में भक्ति नहीं

महिला संत राबिया अरब में बसरा शहर की एक झोंपड़ी में रहकर हर क्षण भगवान् की याद में खोई रहती थीं। वे कहा करती थीं कि प्रत्येक मनुष्य का जीवन क्षणभंगुर है तथा ईश्वर शाश्वत है । बसरा के लोगों ने एक दिन देखा कि राबिया एक हाथ में आग और दूसरे हाथ में पानी से भरी बाल्टी लिए दौड़ …

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ब्रह्मविद्या का ज्ञान

सतयुग में महर्षि दध्यंग आथर्वण अग्रणी ब्रह्मवेत्ता के रूप में विख्यात थे। देव शिरोमणि इंद्र उनकी ख्याति सुनकर एक दिन उनके आश्रम में पहुँचे। इंद्र ने कहा, ‘महर्षि, मेरी मनोकामना पूर्ण करने के लिए मुझे वरदान देने का वचन दें। महर्षि आतिथ्य स्वीकार को बहुत महत्त्व देते थे, अतः उन्होंने वचन देकर उनसे बैठने को कहा। महर्षि ने पूछा, ‘अतिथिवर, …

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